Ajmer Sharif controversy: पहले ज्ञानवापी, फिर संभल और उसके बाद राजस्थान के अजमेर में स्थित प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह विवाद का केंद्र बन चुकी है. हिंदू सेना की ओर से दावा किया गया है कि अजमेर शरीफ के नाम से प्रसिद्ध ख्वाजा मोइनुद्दी चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर है. हिंदू मंदिर का दावा करने वाली यह याचिका बुधवार (27) को निचली अदालत में दायर की गई थी. देर न करते हुए निचली अदालत ने इस याचिका को सुनवाई के लिए मंजूर कर लिया, और सभी पक्षकारों को नोटिस जारी कर सुनवाई के लिए 20 दिसंबर की तारीख तय कर दी है. साथ ही कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को 20 दिसंबर को अपना पक्ष लेकर उपस्थित होने का आदेश दिया है.
बता दें कि हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की क़िताब समेत मंदिर होने के तीन आधार बताते हुए मंदिर में पूजा-पाठ करने की अनुमति देने की मांग की है. उनका दावा है कि किताब में इसका जिक्र है कि यहां ब्राह्मण दंपती रहते थे और दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे. इसके अलावा कई अन्य तथ्य हैं, जो साबित करते हैं कि दरगाह से पहले यहां शिव मंदिर था. जबकि,अजमेर दरगाह के प्रमुख उत्तराधिकारी और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के वंशज सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती ने याचिका को ‘सस्ती लोकप्रियता पाने का स्टंट’ बताते हुए कहा कि, ”ये लोग समाज और देश को गलत दिशा में ले जा रहे हैं.”
चलिए जानते हैं… क्या हैं वो 3 दावे जिनके आधार पर दरगाह की जगह महादेव का मंदिर होने के दावे वाली याचिका की गई है… बात दें कि विष्णु गुप्ता ने अजमेर स्थित दरगाह में मंदिर होने के अपने दावे को तीन मुख्य आधारों पर प्रस्तुत किया है.
गुप्ता का पहला आधार हरबिलास सारदा की 1911 में प्रकाशित पुस्तक का ऐतिहासिक संदर्भ है, जिसमें उन्होंने लिखा था कि दरगाह एक हिंदू मंदिर के स्थान पर बनाई गई है. यही कारण है कि गुप्ता ने इस किताब को अपने दावे का प्रमाण बताया है.
दूसरा आधार, दरवाजों की बनावट व नक्काशी: अपने शोध और निरीक्षण के आधार पर गुप्ता ने दावा किया है कि दरगाह की संरचना एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनाई गई है. उन्होंने दरगाह की दीवारों और दरवाजों पर की गई नक्काशी को हिंदू मंदिरों से प्रेरित बताया है.
सामाजिक और लोक मान्यता: गुप्ता का तीसरा आधार लोक कथाओं और स्थानीय लोगों की मान्यताओं पर आधारित है. उनका कहना है कि वर्षों से स्थानीय लोग और उनके पूर्वज यह मानते आ रहे हैं कि यहां पहले शिवलिंग स्थापित था और यह स्थान संकट मोचन महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता था.
लेवल ये तीन दावे ही नहीं गुप्ता का यह भी कहना है कि दरगाह के तहखाने बंद हैं, और अगर उनका सर्वेक्षण किया जाए, तो सच्चाई सामने आ सकती है. उन्होंने इस स्थान को संकट मोचन महादेव मंदिर घोषित करने और वहां पूजा-अर्चना की अनुमति देने की मांग की भी कोर्ट से की है.
हिंदू सेना ने किस आधार पर किया गया ये दावा?
बता दें कि हिंदू सेना का यह दावा एकदम से नहीं किया गया है. इसके पीछे 2 साल की रिसर्च की बात कही जा रही है. जिसपर हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कहना है कि जब मैंने अजमेर के लोगों को यह कहते सुना कि यहां दरगाह से पहले संकट मोचक महादेव मंदिर था, तो मैंने इसे संदेह की दृष्टि से देखते हुए 2 साल पहले रिसर्च शुरू की. गूगल पर देखा और कई किताबों को पढ़ने की कोशिश की. इसी दौरान मुझे अजमेर के प्रतिष्ठित जज हरबिलास शारदा की किताब अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव के बारे में जानकारी मिली. इसमें दावा किया गया था कि यहां कभी संकट मोचन महादेव का मंदिर हुआ करता था. विष्णु गुप्ता ने अपने दावे के पीछे इसी किताब को सबसे बड़ा आधार बताया है… चलिए जानते हैं कि इस किताब में ऐसा क्या है, जिसके आधार पर इतना बड़ा दावा किया जा रहा है…
किताब में क्या लिखा है?
बता दें कि साल 1911 में हरबिलास सारदा ने अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव नाम से एक किताब लिखी थी. 206 पन्नों की यह किताब अंग्रेजी में लिखी हुई है, जिसमें कई टॉपिक शामिल हैं. इसी किताब में दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का भी एक चैप्टर है, जिसके पेज संख्या 97 के पहले पैराग्राफ में दरगाह में महादेव मंदिर होने का ज़िक्र है. जिसमें यह दावा किया गया है कि, ”परंपरा कहती है कि तहखाने के अंदर एक मंदिर में महादेव की छवि है, जिस पर हर दिन एक ब्राह्मण परिवार द्वारा चंदन रखा जाता था, जिसे अभी भी दरगाह द्वारा घड़ियाली के रूप में रखा जाता है.” इसी को याचिका में मुख्य आधार बनाया गया है.
लेकिन, सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती इस किताब की प्रामाणिकता पर सवाल खड़े किए हैं. जिसपर वह कहते हैं कि, “जितनी भी ऐतिहासिक किताबें हैं, जिनके लेखक हिंदू और मुस्लिम दोनों रहे हैं, उन्होंने अजमेर दरगाह के बारे में ऐसा कोई ज़िक्र नहीं किया है. दुनिया के हिंदू और मुस्लिम सभी की आस्था का केंद्र अजमेर दरगाह है.”
दावे के बाद पुलिस निगरानी बढ़ाई गई
दरगाह के नीचे मंदिर होने के दावे के बाद से ही ये मामला देश भर में चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है. जिसको लेकर राजनीति भी जारी है. लेकिन प्रशासन इसे हल्के में नहीं लेना चाहता है. क्योंकि बीते दिनों देश के कई राज्यों में हुए मंदिर-मस्जिद विवाद के बाद हुई घटनाएं और उग्र प्रदर्शन भी सामने आए हैं. जिसको ध्यान में रखते हुए राजस्थान में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर दिए गए हैं. मीडिया से बातचीत के दौरान अजमेर एसपी वंदिता राणा ने कहा है कि, “हम लगातार सभी समाजों से बातचीत कर रहे हैं. मामला कोर्ट में है, तो कोर्ट अपनी प्रक्रिया के तहत निर्णय लेगा. लेकिन, हम ये सुनिश्चित कर रहे हैं कि शांति व्यवस्था न बिगड़े.”
मुस्लिम पक्ष ने कहा- यह देशहित में नहीं
इस मामले में हिंदू पक्ष की याचिका को स्वीकार करने और मुस्लिम पक्ष को नोटिस के बाद मुस्लिम संगठनों ने ऐतराज जताया है. न्यूज एजेंसी ANI को दिए अपने बयान में अखिल भारतीय सूफी सज्जादानशीन परिषद के अध्यक्ष सैयद नसरुद्दीन चिश्ती ने कहा, “संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किए गए हैं, एक है दरगाह समिति, ASI और तीसरा अल्पसंख्यक मामलों का मंत्रालय. मैं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का वंशज हूं, लेकिन मुझे इसमें पक्ष नहीं बनाया गया है. हम अपनी कानूनी टीम के संपर्क में हैं. देश में ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं. यह हमारे समाज और देश के हित में नहीं है. अजमेर का 850 साल पुराना इतिहास है. मैं भारत सरकार से इसमें हस्तक्षेप करने की अपील करता हूं. एक नया कानून बनाया जाना चाहिए और दिशा-निर्देश जारी किए जाने चाहिए ताकि कोई भी इन जैसे धार्मिक संगठनों पर दावा न कर सके.”