नई दिल्ली/डेस्क: रूस और यूक्रेन युद्ध के डेढ़ साल से भी ज्यादा समय तक जारी रहने का असर धीरे-धीरे दोनों देशों पर दिखने लगा है, खासकर रूस पर, जिसे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और युद्धक्षेत्र में खास सफलता नहीं मिलने से मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, वहीं, पश्चिमी देशों के समर्थन की वजह से यूक्रेन के हालात बिगड़ने से बचे हैं, इस बीच यूक्रेन ने रूस के खिलाफ जवाबी हमले भी बढ़ाए हैं, खासकर बीते कुछ दिनों में क्रीमिया से सटी सीमा के करीब यूक्रेन हमलावर रहा है.
रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहे रूस-अफ्रीका फोरम के दौरान अफ्रीकी देश के नेताओं से कहा कि वे यूक्रेन को लेकर शांति वार्ता के प्रस्ताव को खारिज नहीं करते, युद्ध शुरू होने के बाद से यह लगभग पहली बार है, जब रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन से शांति वार्ता को लेकर सार्वजनिक मंच से ऐसा बयान दिया है.
गौरतलब है कि युद्ध के शुरू होने के बाद से ही रूसी सेना ने यूक्रेन के कई ठिकानों पर हमले किए और उन्हें कब्जे की कोशिश की, हालांकि, युद्ध की अवधि बढ़ने के साथ ही उसकी यह कोशिशें नाकाम होने लगी हैं, यूक्रेन ने अपने बड़े इलाके को रूस के कब्जे से आजाद भी कराया है, वहीं बीते दिनों में यूक्रेन की ओर से रूसी सीमा के अंदर हमले बढ़े हैं, जिसकी पुष्टि खुद यूक्रेनी अधिकारियों ने की है.
दूसरी तरफ इस साल जून तक पुतिन ने यूक्रेन के साथ किसी भी तरह की शांति वार्ता की बात को नकार दिया था, पुतिन ने दावा किया था कि युद्ध में यूक्रेन को सफलता मिलने का कोई मौका ही नहीं है, पुतिन ने तब भी अफ्रीकी देशों की ओर से पेश शांति प्रस्ताव की समीक्षा की बात कही थी, हालांकि, उन्होंने साफ किया था कि यह प्रस्ताव सफल नहीं हो पाएगा, क्योंकि रूस की तरफ से यूक्रेन की अहम मांगों को नहीं माना जा सकता है.
हालांकि, अब पुतिन का बातचीत की मेज पर आने से जुड़ा बयान, अपने आप में रूसी नागरिकों के लिए चौंकाने वाला कदम है, खासकर तब जब यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की लगातार रूस पर पलटवार करने और उससे अपने कब्जे वाले क्षेत्र वापस लेने की बात कह रहे हैं, माना जा रहा है कि यूक्रेन की स्पेशल फोर्सेज की तरफ से बाखमुत में रूसी सेना के खिलाफ बढ़ाए गए हमलों और उसके लगातार पूर्व की तरफ आगे बढ़ने का असर दिखने लगा है.
इसके अलावा रूस को यूक्रेन में जबरदस्त कामयाबी दिलाने वाले वैगनर ग्रुप का अचानक बिखरना भी पुतिन के लिए नुकसान पहुंचाने वाला साबित हुआ है, खासकर पुतिन के वफादार येवजेनी प्रिगोझिन का अचानक रूसी सेना के खिलाफ बगावत करना और बाद में उन्हें बेलारूस भेजे जाने का असर देश की युद्ध रणनीति पर पड़ा है.