मध्य प्रदेश के चुनावी रण में धार्मिक एजेंडा दिलाएगा जीत, जानिए किसका पलड़ा भारी…

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जैसे-जैसे 9 राज्यों का चुनाव (Election) करीब आ रहा है, सभी के मन में एक सवाल है, मध्य प्रदेश में भाजपा (BJP) से लगातार चार बार मुख्यमंत्री (CM) रहे शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) अपनी कुर्सी बचा पाएंगे या नहीं? पुराना चेहरा अधिक भरोसेमंद है या फिर जनता को नए चेहरे की तलाश है?

मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा (Assembly) का चुनाव होने जा रहा है। केवल मध्य प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे 9 राज्यों में चुनाव होंगे लेकिन मध्य प्रदेश का चुनाव सियासी मायनों में बाकी सब से थोड़ा अलग होने वाला है। क्योंकि यहां पिछली बार जब बीजेपी सत्ता में आई तो वो चुनावी संयोग नहीं। राजनीतिक प्रयोग था। 2020 के चुनाव में तो कांग्रेस (Congress) ने अपना झंडा लहराया लेकिन हवा की लहर बीजेपी की ओर बह चली और कांग्रेस की सरकार गिर गई।

शिवराज सिंह सबसे अधिक बार रहे मुख्यमंत्री

इतने लंबे समय से सत्ता में होने के बाद भारतीय जनता पार्टी के लिए मध्य प्रदेश में चुनावी मुद्दा क्या है क्योंकि अगर पीछें की ओर देंखें तो भाजपा ही एक लंबे समय से सत्ता में है और भाजपा का वही पुराना चेहरा कुर्सी पर काबिज है जिसे मध्य प्रदेश में सबसे अधिक लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का खिताब हासिल हो चुका है। तो सवाल ये है कि इतने लंबे समय से मुख्यमंत्री होने के बावजूद भी शिवराज सिंह के पास ऐसे कौन से मुद्दे हैं जिसे वो जनता को दिखा कर वोट मांगने वाले हैं।

फिलहाल देश में विकास से ज्यादा धर्म और राष्ट्र की बात जोरों पर है, तो सवाल ये है कि क्या हिंदूत्व के झंडे पर चुनाव लड़ने की तैयारी की जा रही है? क्योंकि मध्य प्रदेश के बागेश्वर वाले बाबा ने पूरे देश का माहौल गर्म कर रखा है, तो फिर कहीं धर्म के एजेंडे में विकास के मुद्दे को दरकिनार तो नहीं कर दिया जाएगा? ये चुनाव राज्य से ज्यादा केंद्र के लिए जरूरी इसलिए है, क्योंकि मध्य प्रदेश की जीत केंद्र के लिए रास्ता साफ करने वाली है। अगर यहां पार्टी को हार मिले तो इसका असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है। क्योंकि यहां बीजेपी 2003 के बाद से लगातार 2018 तक सत्ता में रही।

मध्य प्रदेश में क्यों गिर गई कांग्रेस की सरकार?

15 सालों के संघर्ष के बाद 2018 में कांग्रेस सत्ता में आ तो गई लेकिन दो साल के भीतर ही सरकार गिर गई। उस समय ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने कई समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। जिसके बाद 19 मार्च को देर रात विधानसभा ने कार्यसूची जारी की। उसके अनुसार अगली सुबह दोपहर 2 बजे तक कमलनाथ को अपनी पार्टी का बहुमत साबित करना था लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और 2020 में 20 मार्च को तत्कालिन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

सिंधिया के हाथ में चुनावी समीकरण?

ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार मध्य प्रदेश के चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले हैं लेकिन देखना ये है कि ये भाजपा के लिए दुबार कितना फायदा पंहुचाते हैं और कांग्रेस के लिए कितना नुकसानदायक साबित होते हैं।