बाणासुर द्वारा स्थापित शिवलिंग को चोरों ने किया खंडित, भगवान शिव और कृष्ण के बीच भयंकर युद्ध का प्रतीक है शिवलिंग!

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हरदोई/उत्तर प्रदेश: आपने भगवान शिव और कृष्ण के बीच हुए युद्ध के बारे में तो सुना ही होगा। महाभारत के बाद हुआ ये युद्ध बहुत ही भयंकर था। इसी युद्ध से जुड़ा है। भगवान शिव के अनन्य भक्त और राक्षसराज बाणासुर द्वारा स्थापित बाणेश्वर महादेव मंदिर, जो हरदोई के अतरौली थाना क्षेत्र के सोनिकपुर गांव में स्थित है। जहां से करीब डेढ़ कुंतल घंटा अज्ञात चोर चोरी कर ले गए और शिवलिंग भी खंडित कर दिया।

मामले की सूचना मिलने पर लोगों की भीड़ जमा हो गई। सूचना पर एसपी भी मौके पर पहुंचे और अब इस मामले में पुलिस जांच पड़ताल कर कार्रवाई में जुट गई है। यह बाणासुर वही था जिसके कारण भगवान शिव और श्रीकृष्ण के बीच भयंकर युद्ध हुआ था।

क्यों हुआ था भगवान शिव और कृष्ण के बीच युद्ध?

दरअसल, महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान कृष्ण परिवार सहित द्वारिका रहने लगे। श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध यानी भगवान कृष्ण का पौत्र थे। कहा जाता है कि प्रद्युम्न की पत्नी का नाम उषा था। श्रीकृष्ण और शिवजी के बीच युद्ध की नींव यहीं से तैयार हुई। पौराणिक कथा के अनुसार उषा और अनिरुद्ध एक दूसरे से प्रेम करते थे।उषा शोणिकपुर के राजा बाणासुर की कन्या थी। बाणासुर को शिवजी का वरदान प्राप्त था कि जब भी कोई संकट आएगा, तो वह उसकी रक्षा करेंगे।

अनिरुद्ध के अपहरण के बाद शुरू हुआ युद्ध!

एक दिन उषा ने अनिरुद्ध से मिलने की इच्छा की तो अनिरुद्ध जैसे ही मिलने पहुंचे, बाणासुर को दोनों के प्रेम के बारे में जैसे ही जानकारी हुई, वह क्रोधित हो उठा और उसने क्रोध में आकर अनिरुद्ध को बंधक बनाकर कारागार में डाल दिया। दूसरी तरफ जैसे ही अनिरुद्ध के बंदी बनाए जाने की सूचना भगवान श्रीकृष्ण को हुई, तो उन्होंने सेना लेकर तुरंत बाणासुर के राज्य पर आक्रमण कर दिया। श्रीकृष्ण की सेना को देखकर बाणासुर के राज्य में हलचल मच गई।

इस विशाल सेना में बलराम, प्रदुम्न, सात्यकि, गदा, साम्ब, सर्न, उपनंदा, भद्रा आदि भगवान श्रीकृष्ण के साथ थे। विशाल सेना को देखकर बाणासुर समझ गया कि युद्ध भयंकर होगा, इसलिए उसने भगवान शिव का ध्यान लगाया और रक्षा करने के लिए कहा। अपने भक्त की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव भी रुद्राक्ष, वीरभद्र, कूपकर्ण, कुम्भंदा, नंदी, गणेश और कार्तिकेय के साथ प्रकट हुए और बाणासुर को सुरक्षा प्रदान करने का भरोसा दिलाया।

जिसके बाद भगवान शिव और भगवान श्रीकृष्ण की सेना आमने-सामने आ गईं। दोनों के बीच भयंकर युद्ध लड़ा गया। किसी की भी सेना कम नहीं पड़ रही थी युद्ध में देखते ही देखते श्रीकृष्ण ने बाणासुर के हजारों सैनिकों को एक ही बार में मौत की नींद सुला दी। इससे बाणासुर परेशान हो गया और भगवान शिव से बाणासुर ने पुन: प्रार्थना की, इसके बाद शिवजी और श्रीकृष्ण के बीच सीधा युद्ध आरंभ हो गया।

इसी युद्ध में पाशुपतास्त्र और नारायणास्त्र का हुआ था प्रयोग

दोनों तरफ से विध्वंसक अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग किया गया। यहां तक की इस युद्ध में शिव ने पाशुपतास्त्र और श्रीकृष्ण ने नारायणास्त्र का प्रयोग किया। इन अस्त्रों से चारों तरफ तेज अग्नि दहकने लगी। इस युद्ध में श्रीकृष्ण ने एक ऐसे अस्त्र का प्रयोग किया, जिससे भगवान शिव को नींद आ गई। शिवजी की ऐसी हालत को देख बाणासुर घबरा गया और रणभूमि से भागने लगा। श्रीकृष्ण ने बाणासुर को दौड़कर पकड़ लिया और उसकी भुजाओं का काटना प्रारंभ कर दिया।

जब बाणासुर की चार भुजाए शेष रह गईं, तभी भगवान शिवजी की नींद खुल गई। बाणासुर की हालत देख शिवजी को क्रोध आ गया और उन्होंने सबसे भयानक शस्त्र शिवज्वर अग्नि चला दिया, जिससे भयंक ऊर्जा उत्पन्न हुई और चारो तरफ बुखार और अन्य बीमारियां फैलने लगीं।

बता दें कि इस शस्त्र का असर समाप्त करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने नारायण ज्वर शीत का प्रयोग करना पड़ा। जिसके बाद धरती पर चारों तरफ हाहाकार फैल गया। युद्ध को रुकता न देख सभी देवताओं ने मां पराशक्ति दुर्गा को याद किया गया। जिसके बाद मां भगवती ने दोनों पक्षों के बीच सुलह कराई और ऊषा-अनिरुद्ध का विवाह कराया।

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