नई दिल्ली: वर्ष 1928 में अमेरिका के एक छोटे से शहर में जन्मा एक बच्चा ने जगत को हैरान कर दिया था। पॉल अलेक्जेंडर नाम के इस बच्चे की जिंदगी ने उस दौर में तीस रुकावटों का सामना किया, जिनमें से एक रुकावट थी लोहे के फेफड़ों से सांस लेने की। जी हां, आपने सही सुना। इस अनोखे व्यक्ति की सांसें इस अद्भुत तकनीकी उपकरण ‘लोहे के फेफड़े’ के बल पर चल रही हैं।
लोहे के फेफड़े को मेडिकल शब्दों में ‘आयरन लंग’ कहा जाता है। यह एक ऐसी मशीन है जो विशेष रूप से पोलियो रोग के प्रभावित रोगियों और जिन्हें सांस लेने में समस्या होती है उन्हें जीवित रखने में सहायता करती है।
पॉल को पोलियो की बीमारी की वजह से लकवा हो गया था, तभी से इन्हे इस लोहे के फेफड़े वाली मशीन की मदद लेनी पड़ी। इनकी इस कंडीशन के बावजूद, पॉल ने जीवन से कभी हार नहीं मानी और इसी हालत में उन्होनें अपनी हायर स्टडीज भी पूरी की।
1952 में हुआ लकवा
1952 में जब पॉल बस छह साल के थे, तभी उन्हें खेलते समय उनकी गर्दन में चोट लग गयी, जिससे उन्हें सांस लेने में दिकत होने लगी, डॉक्टरों ने देखा तो पाया कि उनके फेफड़ों में जमाव हो रहा है, जिसकी वजह से वे सांस नहीं ले पा रहे थे। जिसके बाद शरीर में लकवा मार चुका था। उन्हें ट्रेकियोटॉमी की जरूरत पड़ी, जिससे उन्हें सांस लेने के लिए एक ट्यूब लगाना पड़ी।
आयरन लंग्स के सहारे है जीवित

पॉल को लगभग पूरे तीन दिन के बाद होश आया। जब आंख खुली तो उन्होंने देखा कि वे एक लोहे की मशीन के अंदर हैं। इसमें मेडिकल की भाषा में आयरन लंग्स मशीन कहते हैं। यह मशीन लकवाग्रस्त मरीजों के फेफड़ों में ऑक्सीजन भरने का काम करती है ताकि वह शख्स जिंदा रह सके।
हालांकि, हमेशा इस मशीन में कैद रहना आसान काम नहीं होता। मगर पॉल अलेक्जेंडर सालो से इसी मशीन के सहारे जिंदा हैं।
जिंदगी से मिलती है प्रेरणा
पॉल की जिंदगी के विभिन्न चरणों में उन्होंने न केवल खुद के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी मिसाल पेश की है। उन्होंने कई उदाहरण स्थापित किए हैं जो साबित करते हैं कि सहायता के बिना भी एक व्यक्ति अपने सपनों को पूरा कर सकता है। पॉल ने अपने जीवन के दौरान कठिनाइयों का सामना करके सबित किया है कि अगर इच्छाशक्ति, सामर्थ्य, और जिद है तो कुछ भी संभव है।
लोहे के फेफड़ों से सांस लेने वाले पॉल अलेक्जेंडर की जीवनी हमें उस संघर्ष का सामर्थ्य दिखाती है, जो हमें सभी परिस्थितियों में अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विनम्रता से मुखाग्नि रखने की आवश्यकता है।
उनकी जीवनी ने हमें यह सिखाया है कि संघर्ष और सहायता के बावजूद अगर मन में अभिलाषा होती है, तो सपने साकार करना संभव है। यह हमें एक नई ऊंचाइयों की ओर उत्साहवर्धक संदेश देती है कि जीवन में कठिनाइयों का सामना करने से हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि संघर्ष करते हुए उन्हें पार करने का साहस होना चाहिए।
नई दिल्ली
रिपोर्ट: करन शर्मा